उम्मीद से बेहतर है पेशकश |
आकाश प्रकाश, सीईओ, अमांसा कैपिटल / March 16, 2012 |
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शेयर बाजार : स्टॉक मारकेट की एक्सपर्ट सलाह. ShareKhan-FirstStep.com |
वित्त मंत्री ने बजटीय गणित को सकारात्मक मोड़ देकर अच्छा काम किया है। उन्होंने वित्त वर्ष 2011 के राजकोषीय घाटे के लिए 5.1 फीसदी और वित्त वर्ष 2012 के लिए 4.6 फीसदी का आंकड़ा देकर वित्तीय बाजार को सुखद आश्चर्य में डाल दिया। दरअसल 4.6 फीसदी का आंकड़ा वर्ष 2012 के लिए बाजार के 5.1-5.2 फीसदी के अनुमानों से काफी कम है। वित्त मंत्री ने यह आंकड़ा बगैर किसी आम माफी योजना अथवा संपत्ति नीलामी से आकस्मिक रूप से धन प्राप्ति की उम्मीद के बगैर पेश किया है, यह बात इसे और अधिक विश्वसनीय बनाती है।
बहरहाल समस्या यह है कि उनके इस गणित में पैंतरेबाजी नजर आती है। दरअसल उन्होंने वित्त वर्ष 2012 में सब्सिडी में कमी वाला बजट तैयार किया है! वित्त मंत्री ने बजट में तेल क्षेत्र की सब्सिडी 38,000 करोड़ रुपये से घटाकर 23,000 करोड़ करने, उर्वरक सब्सिडी को 55,000 करोड़ से कम कर 50,000 करोड़ करने और खाद्य सब्सिडी को 60,000 करोड़ रुपये पर स्थिर करने की व्यवस्था की है। सब्सिडी के ये आंकड़े कतई विश्वासयोग्य नहीं नजर आते हैं, खासतौर पर कच्चे तेल की 105 डॉलर प्रति बैरल की कीमत को मद्देनजर रखते हुए। इससे संबंधित बजट में न्यूनतम 50,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था और होनी थी। इस लक्ष्य को हासिल करने का इकलौता तरीका यही है कि वित्त मंत्री तत्काल ऐसे कदम उठाएं जिनके जरिए डीजल कीमतों को नियंत्रण मुक्त किया जा सके, इसके अलावा अन्य ईंधन कीमतों में इजाफा किया जा सके और यूरिया के लिए पोषण आधारित सब्सिडी की व्यवस्था (कीमतों में तत्काल इजाफे के साथ) की जा सके। अगर वह ऐसा कर सके तो ये कमाल के सकारात्मक सुधार होंगे लेकिन पुराना रिकॉर्ड देखते हुए इस बात पर भरोसा नहीं होता है। इसके अलावा उन्होंने भोजन का अधिकार विधेयक के लिए भी कुछ मुहैया नहीं कराया है।
राजस्व के मोर्चे पर भी कर राजस्व में 18-20 फीसदी इजाफे का अनुमान लगाना जरूरत से ज्यादा है। समूचा राजकोषीय गणित गड़बड़ाया हुआ है और संभवत: हमें 4.6 के बजाय 5 फीसदी के राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़े। इसी तरह शुद्घ बाजार उधारी का आंकड़ा भी 400,000 करोड़ रुपये के करीब रह सकता है जबकि बजट में इसके 3.5 लाख करोड़ रहने का अनुमान जताया गया है। बाजार उधारी की मात्रा को देखते हुए ब्याज दरों और बॉन्ड प्रतिफल के दबाव में रहने का अनुमान है। राजकोष के मुद्दे पर भले ही वित्त मंत्री अपने लक्ष्यों को हासिल न कर सकें लेकिन बहुत लोकलुभावन बजट न पेश करने के लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए। वित्त वर्ष 2012 के दौरान वह गत वर्ष की तुलना में व्यय वृद्घि में महज 3.5 फीसदी बढ़ोतरी का लक्ष्य तय कर रहे हैं। दरअसल उन्होंने वित्त वर्ष 2012 के लिए गैर योजनागत खर्च में एक फीसदी की कमी की बात कही है। जाहिर है सरकारी खर्च में 15 से 18 फीसदी के इजाफे का पुराना समय अब बीत चुका है। उन्होंने खर्च के मोर्चे पर अनुशासन बरत कर रिजर्व बैंक पर से काफी बोझ कम कर दिया है। अगर राजकोष की बात करें तो मैं यह कहना चाहूंगा कि सारी चीजें उतनी अच्छी नही हैं जितनी कि उन्होंने दर्शाई हैं। हालांकि खर्च को नियंत्रित करने की इच्छा और ईंधन तथा उर्वरक सब्सिडी पर उनके इरादों को सकारात्मक माना जा सकता है।
ढांचागत सुधारों की बात करें तो मेरे विचार में वित्त वर्ष 2012 के अंत तक ईंधन तथा उर्वरकों के क्षेत्र में नकदी आधारित सब्सिडी की जो बात कही गई है वह अत्यंत सकारात्मक पहलू है। यह बहुत बड़ा और जबरदस्त परिवर्तन लाने वाला सुधार होगा और संभवत: इन दो क्षेत्रों के लिए उनके बजट में की गई अल्प व्यवस्था को भी स्पष्ट करेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि हम इन मुद्दों पर अब महज बातचीत से आगे निकल आए हैं। वित्त मंत्री ने कुछ हद तक जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) की तैयारियों के बारे में भी बात की। उन्होंने वित्त वर्ष 2012 तक डीटीसी (प्रत्यक्ष कर संहिता) को लागू करने की बात की और वित्त वर्ष 2012 में दोनों को लागू करने का स्पष्ट संकेत दिया। वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न विधेयकों मसलन, बीमा और पीएफआरडीए तथा रिजर्व बैंक द्वारा नए बैंकों के लिए लाइसेंस आदि के जरिए वित्तीय सुधारों के क्षेत्र में और आगे निकलने की बात एक और सकारात्मक पहलू रहा। नए कंपनी अधिनियम को लागू करने का वादा इस बात को दर्शाता है कि सरकार इस दिशा में निरंतर आगे बढऩे को लेकर प्रतिबद्घ है। कर दरों (विशेषतौर पर अप्रत्यक्ष कर) को लेकर निर्णय उतने आश्वस्त करने वाले नहीं हैं, लेकिन उन्हें स्थिर बनाए रखना और छूट में कमी लाने व स्थिर कर नीति के लिए जमीन तैयार करने की कोशिश इस क्षेत्र में अच्छा विकास है। करों में स्थिरता और उनका उम्मीद के मुताबिक होना अच्छा है और यह दीर्घावधि की निर्णयप्रक्रिया में सहायक होता है। अब सरकार कलम चलाकर एक झटके में उद्योग जगत का आर्थिक गणित नहीं बदलेगी।
कॉर्पोरेट इन्फ्रा बॉन्ड की सीमा में 20 अरब डॉलर का इजाफा और पांच वर्ष की लॉक इन अवधि के बावजूद उन्हें विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के लिए कारोबार योग्य बनाना सकारात्मक कदम है। हालाकि यह देखना होगा कि एफआईआई इसका इस्तेमाल किस प्रकार करते हैं। विदेशियों को म्युचुअल फंड में निवेश की अनुमति देना भी एक बढिय़ा और प्रोत्साहित करने वाला कदम है। अगर नकारात्मक हिस्सों पर नजर डालें तो हमने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति देने का मौका गंवा दिया। इसके अलावा कृषि आपूर्ति श्रृंखला के इर्दगिर्द समूचे नियामक ढांचे (एपीएमसी ऐक्ट, मंडी टैक्स) में सुधार के लिए कुछ नहीं किया गया। प्राकृतिक संसाधनों के आधुनिकीकरण के समूचे मुद्दे को एक समिति के हवाले कर दिया गया और पर्यावरण नियमन के मुद्दे पर एक और मंत्री समूह का गठन। इसी तरह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक और मंत्री समूह की स्थापना से भी विश्वास बहाल होना मुश्किल है। वित्त मंत्री ने यूरिया में पोषण के आधार पर सब्सिडी के क्षेत्र में कोई कदम न उठाकर और परियोजनाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए भूमि अधिग्रहण के क्षेत्र में कोई ढांचा बनाने की मंशा न जताकर निराश किया। कुल मिलाकर उनकी कोशिश उम्मीद से बेहतर रही लेकिन बाजार के लिए ये काफी नहीं है।
बहरहाल समस्या यह है कि उनके इस गणित में पैंतरेबाजी नजर आती है। दरअसल उन्होंने वित्त वर्ष 2012 में सब्सिडी में कमी वाला बजट तैयार किया है! वित्त मंत्री ने बजट में तेल क्षेत्र की सब्सिडी 38,000 करोड़ रुपये से घटाकर 23,000 करोड़ करने, उर्वरक सब्सिडी को 55,000 करोड़ से कम कर 50,000 करोड़ करने और खाद्य सब्सिडी को 60,000 करोड़ रुपये पर स्थिर करने की व्यवस्था की है। सब्सिडी के ये आंकड़े कतई विश्वासयोग्य नहीं नजर आते हैं, खासतौर पर कच्चे तेल की 105 डॉलर प्रति बैरल की कीमत को मद्देनजर रखते हुए। इससे संबंधित बजट में न्यूनतम 50,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था और होनी थी। इस लक्ष्य को हासिल करने का इकलौता तरीका यही है कि वित्त मंत्री तत्काल ऐसे कदम उठाएं जिनके जरिए डीजल कीमतों को नियंत्रण मुक्त किया जा सके, इसके अलावा अन्य ईंधन कीमतों में इजाफा किया जा सके और यूरिया के लिए पोषण आधारित सब्सिडी की व्यवस्था (कीमतों में तत्काल इजाफे के साथ) की जा सके। अगर वह ऐसा कर सके तो ये कमाल के सकारात्मक सुधार होंगे लेकिन पुराना रिकॉर्ड देखते हुए इस बात पर भरोसा नहीं होता है। इसके अलावा उन्होंने भोजन का अधिकार विधेयक के लिए भी कुछ मुहैया नहीं कराया है।
राजस्व के मोर्चे पर भी कर राजस्व में 18-20 फीसदी इजाफे का अनुमान लगाना जरूरत से ज्यादा है। समूचा राजकोषीय गणित गड़बड़ाया हुआ है और संभवत: हमें 4.6 के बजाय 5 फीसदी के राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़े। इसी तरह शुद्घ बाजार उधारी का आंकड़ा भी 400,000 करोड़ रुपये के करीब रह सकता है जबकि बजट में इसके 3.5 लाख करोड़ रहने का अनुमान जताया गया है। बाजार उधारी की मात्रा को देखते हुए ब्याज दरों और बॉन्ड प्रतिफल के दबाव में रहने का अनुमान है। राजकोष के मुद्दे पर भले ही वित्त मंत्री अपने लक्ष्यों को हासिल न कर सकें लेकिन बहुत लोकलुभावन बजट न पेश करने के लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए। वित्त वर्ष 2012 के दौरान वह गत वर्ष की तुलना में व्यय वृद्घि में महज 3.5 फीसदी बढ़ोतरी का लक्ष्य तय कर रहे हैं। दरअसल उन्होंने वित्त वर्ष 2012 के लिए गैर योजनागत खर्च में एक फीसदी की कमी की बात कही है। जाहिर है सरकारी खर्च में 15 से 18 फीसदी के इजाफे का पुराना समय अब बीत चुका है। उन्होंने खर्च के मोर्चे पर अनुशासन बरत कर रिजर्व बैंक पर से काफी बोझ कम कर दिया है। अगर राजकोष की बात करें तो मैं यह कहना चाहूंगा कि सारी चीजें उतनी अच्छी नही हैं जितनी कि उन्होंने दर्शाई हैं। हालांकि खर्च को नियंत्रित करने की इच्छा और ईंधन तथा उर्वरक सब्सिडी पर उनके इरादों को सकारात्मक माना जा सकता है।
ढांचागत सुधारों की बात करें तो मेरे विचार में वित्त वर्ष 2012 के अंत तक ईंधन तथा उर्वरकों के क्षेत्र में नकदी आधारित सब्सिडी की जो बात कही गई है वह अत्यंत सकारात्मक पहलू है। यह बहुत बड़ा और जबरदस्त परिवर्तन लाने वाला सुधार होगा और संभवत: इन दो क्षेत्रों के लिए उनके बजट में की गई अल्प व्यवस्था को भी स्पष्ट करेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि हम इन मुद्दों पर अब महज बातचीत से आगे निकल आए हैं। वित्त मंत्री ने कुछ हद तक जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) की तैयारियों के बारे में भी बात की। उन्होंने वित्त वर्ष 2012 तक डीटीसी (प्रत्यक्ष कर संहिता) को लागू करने की बात की और वित्त वर्ष 2012 में दोनों को लागू करने का स्पष्ट संकेत दिया। वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न विधेयकों मसलन, बीमा और पीएफआरडीए तथा रिजर्व बैंक द्वारा नए बैंकों के लिए लाइसेंस आदि के जरिए वित्तीय सुधारों के क्षेत्र में और आगे निकलने की बात एक और सकारात्मक पहलू रहा। नए कंपनी अधिनियम को लागू करने का वादा इस बात को दर्शाता है कि सरकार इस दिशा में निरंतर आगे बढऩे को लेकर प्रतिबद्घ है। कर दरों (विशेषतौर पर अप्रत्यक्ष कर) को लेकर निर्णय उतने आश्वस्त करने वाले नहीं हैं, लेकिन उन्हें स्थिर बनाए रखना और छूट में कमी लाने व स्थिर कर नीति के लिए जमीन तैयार करने की कोशिश इस क्षेत्र में अच्छा विकास है। करों में स्थिरता और उनका उम्मीद के मुताबिक होना अच्छा है और यह दीर्घावधि की निर्णयप्रक्रिया में सहायक होता है। अब सरकार कलम चलाकर एक झटके में उद्योग जगत का आर्थिक गणित नहीं बदलेगी।
कॉर्पोरेट इन्फ्रा बॉन्ड की सीमा में 20 अरब डॉलर का इजाफा और पांच वर्ष की लॉक इन अवधि के बावजूद उन्हें विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के लिए कारोबार योग्य बनाना सकारात्मक कदम है। हालाकि यह देखना होगा कि एफआईआई इसका इस्तेमाल किस प्रकार करते हैं। विदेशियों को म्युचुअल फंड में निवेश की अनुमति देना भी एक बढिय़ा और प्रोत्साहित करने वाला कदम है। अगर नकारात्मक हिस्सों पर नजर डालें तो हमने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति देने का मौका गंवा दिया। इसके अलावा कृषि आपूर्ति श्रृंखला के इर्दगिर्द समूचे नियामक ढांचे (एपीएमसी ऐक्ट, मंडी टैक्स) में सुधार के लिए कुछ नहीं किया गया। प्राकृतिक संसाधनों के आधुनिकीकरण के समूचे मुद्दे को एक समिति के हवाले कर दिया गया और पर्यावरण नियमन के मुद्दे पर एक और मंत्री समूह का गठन। इसी तरह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक और मंत्री समूह की स्थापना से भी विश्वास बहाल होना मुश्किल है। वित्त मंत्री ने यूरिया में पोषण के आधार पर सब्सिडी के क्षेत्र में कोई कदम न उठाकर और परियोजनाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए भूमि अधिग्रहण के क्षेत्र में कोई ढांचा बनाने की मंशा न जताकर निराश किया। कुल मिलाकर उनकी कोशिश उम्मीद से बेहतर रही लेकिन बाजार के लिए ये काफी नहीं है।
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